आठ मुखी रुद्राक्ष
अष्टवक्त्रो महासेनः साक्षाद्देवो विनायकः ।
अन्नकूटं तूलकूटं स्वर्णकूटं तथैव च ।।
आठ मुख वाला रुद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरव रूप है । उसको धारण करने से मनुष्य पूर्णायु होता है। और मृत्यु पश्चात् शूलधारी शङ्कर के धाम को जाता है। आठ मुखी रुद्राक्ष में कार्तिकेय, गणेश, अष्टामृतगण, अष्टवसुकगण और गङ्गा का अधिवास भी माना गया है। इसको धारण करने से सत्यवादी सब देवता प्रसन्न होते हैं।
दुष्टवंश की स्त्री और गुरूपत्नी का स्पर्शादि पापों से मुक्ति मिलती है। यह रुद्राक्ष मिथ्या भाषण से उत्पन्न पापों को नष्ट करता है । यह सम्पूर्ण विघ्नों को नष्ट करता है। अन्नकूट ( अन्न में मिलावट करने वाला) तूलकूट (डंडी मारने वाला) स्वर्णकूट (सोने में मिलावट करने वाला) आदि में भागीदारी करने के सभी दोष इस आठ मुखी रुद्राक्ष के धारण करने मात्र से दूर हो जाते हैं ।
आठ मुखी रुद्राक्ष का नियंत्रक और संचालक ग्रह राहु है । जो छाया ग्रह है। इसमें शनि ग्रह की भाँति शनि ग्रह से भी बढ़कर प्रकाशहीनता का दोष है । यह शनि की तरह पीड़ादायक, अभाव कारक एवं रोगकारक है। यह आपके द्वारा तैयार योजनाओं में विलम्ब कराने वाला ग्रह है। राहु ग्रह घटनाओं को अकस्मात् भी दूषित करा देता है।

फेफड़े की बीमारी, पैरों का कष्ट, चर्म रोग, सर्पभय, मोतियाबिन्द, अण्डकोष–वृद्धि, श्वास कष्ट इत्यादि रोगों का कारक राहु ग्रह है। जो मनुष्य आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करता है । वह उक्त सभी रोगों एवं राहु ग्रह की पीड़ाओं से मुक्त हो जाता है। इस रुद्राक्ष को धारण करने का मन्त्र “ॐ हुं नमः” है। अतः आठ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने के पूर्व कम से कम 108 बार उक्त मन्त्र का जप करना चाहिये ।
पता- कार्यालय शिवा मिशन न्यास (रजि.) ग्वालियर
‘‘ रुद्राक्ष ‘‘ ॐ नमः शिवाय मन्त्र बैंक
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