नौ मुखी रुद्राक्ष
नववक्त्रो भैरवस्तु धारयेद्वामबाहुके ।
भुक्तिमुक्ति प्रदः प्रोक्तो मम तुल्यबलो भवेत् । ।
नौ मुख वाले रुद्राक्ष को भैरव तथा कपिलमुनि का प्रतीक माना गया है । अथवा नौ रूप धारण करने वाली माहेश्वरी दुर्गा उसकी अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। जो मनुष्य भक्ति-परायण हो अपने बाँये हाथ में नव मुख रुद्राक्ष को धारण करता है वह निश्चय ही शिव समान सर्वेश्वर हो जाता है। इसमें संशय नहीं है।
नौ मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से यमराज का भय नहीं रहता क्योंकि यमराज को भी इस रुद्राक्ष का देवता माना गया है। इसे धारण करने से भ्रूण हत्या (गर्भपात) करने के पाप से मुक्ति मिलती है तथा सभी नौ शक्तियाँ प्रसन्न होती हैं ।
नौ मुखी रुद्राक्ष का नियंत्रक और संचालक ग्रह केतु है जो राहु की तरह छाया ग्रह है। जिस प्रकार राहु शनि के सदृश है, उसी प्रकार केतु मङ्गल ग्रह के सदृश है । मङ्गल ग्रह की तरह केतु भी अपने सहचर्य और दृष्टि के प्रभाव में आने वाले पदार्थों को हानि पहुँचाता है। केतु के कुपित होने पर फेफड़े का कष्ट, ज्वर, नेत्र पीड़ा, उदर कष्ट, फोड़े-फुंसियाँ, शरीर में दर्द दुर्घटना एवं अज्ञात कारणों से उत्पन्न रोग परेशान करते हैं। केतु को मोक्ष का कारक भी माना गया है।

केतु ग्रह की शान्ति के लिये ज्यादातर लहसुनिया रत्न धारण करने का परामर्श देते हैं। परन्तु अनुभवों से यह सिद्ध हुआ है कि नौ मुखी रुद्राक्ष लहसुनिया रत्न से कई गुना ज्यादा प्रभावी है। इसे धारण करने का मन्त्र “ॐ ह्री हुं नमः" है । अतः उक्त मन्त्र का कम से कम 108 बार जप करना चाहिये तदोपरान्त ही नौ मुखी रुद्राक्ष को धारण करना चाहिये ।
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‘‘ रुद्राक्ष ‘‘ ॐ नमः शिवाय मन्त्र बैंक
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