दो मुखी रुद्राक्ष
द्विवक्त्रो देवदेवेशस्सर्वकामफलप्रदः ।
विशेषतः सरुद्राक्षो गोवधवाशयेदूद्रुतम् ।।
दो मुखी रुद्राक्ष को देवदेवेश्वर कहा गया है यह सम्पूर्ण कामनाओं और फलों को देने वाला है। दो मुखी रुद्राक्ष साक्षात् अग्नि स्वरूप है, जिस मनुष्य ने इसे धारण कर लिया, उसके जन्म-जन्मांतर के पाप उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जिस प्रकार अग्नि ईधन को जला डालती है।
दो मुखी रुद्राक्ष का अधिपति ग्रह चन्द्रमा है अतः कर्क राशि वालों को इसे अवश्य ही धारण कर लाभ उठाना चाहिये । इस रुद्राक्ष को धारण करने से चन्द्रमा की प्रतिकूलता से उत्पन्न सभी दोषों का निवारण हो जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से चन्द्रमा हृदय, फेंफडा, मस्तिष्क, वामनेत्र, गुर्दा, भोजन नली, शरीरस्थ जल मात्रा इत्यादि का कारक है । चन्द्रमा की प्रतिकूल स्थिति तथा दुष्प्रभाव के कारण हृदय तथा फेंफडों की बीमारी होती है। बाँयी आँख की खराबी, खून की कमी, जल संबंधी रोग, गुर्दा कष्ट, मासिक धर्म रोग, स्मृति भ्रंश इत्यादि रोग होते हैं।
ज्योतिष के विभिन्न प्रकार के अरिष्ट योगों में केन्द्रुम योग बहुत प्रमुख है । यह योग चन्द्रमा के घर से आगे या पीछे के घर में किसी ग्रह के न होने से बनता है । इन सभी प्रकार की प्रतिकूलताओं तथा दुष्प्रभाव से बचने के लिये दो मुखी रुद्राक्ष को चमत्कारिक लाभ के लिये अवश्य धारण करना चाहिये । गुणों के हिसाब से यह मोती से कई गुना ज्यादा प्रभावी है। इसे धारण करने से पूर्व “ॐ नमः” मन्त्र से 108 बार जप करना चाहिये। यह रुद्राक्ष भी गोलाकार एवं काजू शेप में आता है। किन्तु इसका प्रभाव समान ही जानना चाहिये ।

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‘‘ रुद्राक्ष ‘‘ ॐ नमः शिवाय मन्त्र बैंक
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