दान
आपके बहुमूल्य दान का उपयोग इसके लिए किया जाएगा
1. ऊँ नमः शिवाय मंत्र पुस्तकों की छपाई |
₹7.50 /प्रतिलिपि 500 से अधिक प्रतियों के लिए।
3. अन्य उद्देश्यों पर काम करें ।
1. ऊँ नमः शिवाय मंत्र पुस्तकों की छपाई |
₹7.50 /प्रतिलिपि 500 से अधिक प्रतियों के लिए।
3. अन्य उद्देश्यों पर काम करें ।
संस्थापक
विश्वनाथ प्रताप सिंह
शिव मिशन न्यास (ट्रस्ट)
(पंजीकृत) ग्वालियर
418, तानसेन नगर, ग्वालियर 474002 (एमपी)
यदि आप भरतीय हैं और विदेश में स्थाई अथवा अस्थाई रूप से निवास कर रहे हैं। यदि आपके मन में सम्पूर्ण विश्व में सनातन धर्म की पुर्नस्थापना का विचार हैं। यदि आप् मानते हैं, कि भगवान् सदाशिव ही साक्षात् ब्रह्म हैं और उन्हीं से ब्रह्मा विष्णु महेश का पाकट्य हुआ हैं, उन्हीं के नाद रूपी शब्द ब्रह्म'ॐ' से ही चारों वेद प्रकट हुए हैं। यदि आप मानते हैं कि आदिकाल से सम्पूर्ण विश्व में केवल भगवान् सदाशिव ही लिन्ग रूप में प्रतिष्ठित थे और सर्वत्र भगवान् शिव की ही पूजा - अर्चना होती थी, तो आइये बाबा कैलासी के शिवत्व की पुर्नस्थापना के संदेश को मूर्ति रूप् प्रदान करें। बाबा कैलासी द्वारा शिवा मिशन न्यास (रजि.) ग्वलियर को शिवत्व की पुर्नस्थापना का सन्देश विश्व भर में पहुँचाने का निर्देश दिया गया हैं जिसके महत्वपूर्ण बिन्दू निम्नानुसार हैं।
'पुराणों के अनुसार केवल मानव जन्म के माध्यम से 84 मिलियन योनिस (प्राणियों) के चक्र से विलुप्त होने को प्राप्त किया जा सकता है, यह किसी विशेष जाति और धर्म की परंपराओं के उचित अनुष्ठान को किया जा सकता है। हालांकि, पुराणों के अनुसार, अंतर जाति विवाह वाले लोग केवल 'शि ... की पूजा के माध्यम से उद्धार प्राप्त कर सकते हैं ...
शिव और शक्ति से उत्पन्न होने के कारण यह जगत् शैव या शाक्त है। वर्तमान युग में आज के बहुसंख्यक युवा वर्ग जाति परम्परा के विरूद्ध अन्तरजातीय विवाह की ओर उन्मुख हो रहे हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवान् शिव-शक्ति (अर्धनारीश्वर) के आदेश से ब्रह्मा जी द्वारा मनु और शतरूपा को मानस पुत्र-पुत्री के रूप में उत्पन्न किया जिनकी सन्तान ही सम्पूर्ण प्रथ्वी पर वर्तमान में लगभग 7 अरब जनसंख्या के रूप में दृष्टिगोचर हो रही है। इस मत के अनुसार सतयुग में मनुष्य की कोई जाति नहीं थी, किन्तु त्रेतायुग में कर्म के आधार पर जातियों का निर्माण/विभाजन किया गया जो उनके बाद द्वापर युग से होता हुआ कलियुग में भयानक रूप धारण कर गया। आप सभी जानते हैं, कि कलियुग के बाद सतयुग आयेगा और उसी का आगाज हमारे युवा वर्ग ने अन्तरजातीय विवाह कर प्रारम्भ कर दिया है। किन्तु इस अन्तरजातीय विवाह में हमारे धर्मशास्त्रों के मतानुसार उनकी होने वाली सन्तान द्वारा अपने पितरों को पिण्डदान एवं श्राद्ध आदि किये जाने वाले कर्मों का लाभ नहीं मिलता और उनकी अप्रन्नता का दुष्परिणाम वर्णसंकर सन्तान को भोगना पड़ता है।
किन्तु इस समस्या का समाधान शिवपुराण में दिया गया है, चूकि शिव और शक्ति से उत्पन्न होने के कारण यह जगत् ‘‘शैव‘‘ या ‘‘शाक्त‘‘ है। अतः जो वर्णसंकर सन्तान हैं वह यदि भगवान् शिव की उपासना करती है तो उसके द्वारा किये गये पिण्डदान एवं श्राद्ध आदि क्रियाओं का लाभ पूर्वजों (पितरों) को मिलता है और वो संतुष्ट होकर आशीर्वाद देते हैं। इसलिये यह आवश्यक है, कि जिन लोगों ने अन्तरजातीय विवाह किया है वे भगवान् शिव की उपासना करें एवं ‘‘शिवा-शिव परिवार‘‘ के सदस्य बन जायें तथा उसी परिवार में भविष्य में शादी-सम्बन्ध, रोटी-बेटी आदि के सम्बन्ध स्थापित करें। इससे जहाँ एक ओर आपके घर में सुख-शान्ति आयेगी वहीं दूसरी ओर कलियुग के दुष्परिणाम से आप सुरक्षित रहेंगे और यथा शीघ्र कलियुग की समाप्त एवं सतयुग के आरम्भ होने में आपका महत्वपूर्ण योगदान होगा। तथा विश्व में शान्ति एवं सद्भाव का वातावरण होकर ‘‘बसुदेवकुटुम्भकम्‘‘ की अवधारणा मूर्तिरूप लेगी। एवं जाति विहीन ब्रह्म ज्ञानी समाज का विश्व में निर्माण होगा।
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हमारे सनातन धर्म में दान की महत्ता को श्रेष्ठ माना गया है, किन्तु इस दान करने की प्रवृत्ति का लाभ उठाकर कुछ लोगों ने धर्मप्राण जनता की भावना के साथ खिलवाड़ कर उन्हें ठगने का प्रयास किया है। आप दान देते हैं, किन्तु आपके दान का सही-सही उपयोग नहीं होता, अनेक संस्थायें एवं धर्मस्थलांे ने दान के नाम पर अरबों की सम्पत्ति एकत्रित कर ली, किन्तु दान का जो दैहिक, दैविक एवं भौतिक लाभ दानदाता को प्राप्त होना था वह नहीं हुआ। इस समस्या का समाधान बाबा कैलासी के आदेश से शिवा मिशन न्यास (रजि.) द्वारा निकाला गया है, यदि आप सहमत हैं तोे संलग्न प्रोफार्मा में जानकारी भर सकते हैं। इस व्यवस्था के तहत आपको किसी संस्था को पैसा नहीं देना है बल्कि आपके पास शिवा मिशन न्यास का मैसेज आने पर स्वयं पीड़ित पक्ष से सम्पर्क कर सीधे आपको ही उसकी सहायता करनी हैै, (यदि वह सहायता प्राप्त करने योग्य है) शिवा मिशन न्यास (रजि.) द्वारा साफ्टवेयर के माध्यम से केवल दानदाता को दानग्रहीता तक पहुँचाने का कार्य किया जा रहा है, न कि आपसे पैसा लेकर दूसरों की सहायता करना। इस साफ्टवेयर में यह प्रावधानित है कि दानग्रहीता का पता आदि विवरण तो आपको (दानदाता) को प्राप्त होगा, किन्तु आपका (दानदाता) का पता दानग्रहीता को प्राप्त नहीं होगा जिससे वो आप तक नहीं पहुँच सके, केवल आप ही उस व्यक्ति तक पहुँच सकें। इस व्यवस्था में इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि दानग्रहीता आपके निवास के निकटवर्ती क्षेत्र में ही होगा दूर दराज के क्षेत्र में नहीं। जिसस आपको पीड़ित पक्ष तक पहुँचने में कोई असुविधा न हो। यदि इस योजना को और अच्छा/ पारदर्शी बनाने में आपका सुझाव हो तो अवश्य दें।
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